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द हेरोफंट

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अपराईट भविष्य कथन का महत्व



दया, अनुरूपता, क्षमा, सामाजिक स्वीकृति, बंधुआ, प्रेरणा, आध्यात्मिक ज्ञान, धार्मिक विश्वास, परंपरा, संस्थान

यह कार्ड एक 'न्युट्रल' कार्ड है। न्यूट्रल मतलब किसी भी चीज में हिस्सा ना लेनेवाला व्यक्ती। अपने आप में मस्त्। ना किसी से कुछ लेना ना किसी से कुछ देना। अपना करो अपना खाओ। सबके लिए आपके मन में दया, क्षमा का भाव रहता है। किसी से बदला लेने का विचार आपके मन में नहीं आता। आपको तकलीफ देने वाले लोगों को भी आप माफ कर देते है। आपको उनकी अग्यानता पर दया आति है, कि उन्होंने आप की ताकत को जाना ही नहीं।

ठीक महर्षि वाल्मीकि के जैसे, जो खुद तो एक हत्यारा थे किंतु उनके सभी पापो को क्षमा कर प्रभु ने उन्हे महर्षि बनाया।

आपने हमेशा लव - कुश के जैसे अपने गुरू एवं बडे बुजुर्गों की बात का अनुपालन आज्ञापालन ही किया है। जिसके कारण आप भी दूसरे लोगों से यही उम्मिद रखते है। किंतु आपका मजाक उडाया जाता है, आपकी आज्ञा का पालन नहीं होता।

आपको लेकिन उन लोगों की परवाह नहीं होती, क्योंकि आपका समाज में नाम है। लोग आपको बहोत मानते हैं। आपकी सामाजिक स्वीकृति जबरदस्त है। आपके समाज में आपकी इज्जत है। कै बार आप व्यावहारिकता से भी ज्यादा भावनाओंके हाथों मजबूर (बंधुआ) हो जाते हैं। आपको मालूम होता है किसी चीज का परिणाम क्या निकलेगा फिर भी आप अपने को रोक नहीं पाते। काया करे आपका दिल हमेशा दिमाग पर भारी पडता है। लोग आपसे प्रेरणा लेते है। उन्हे आप जो आध्यात्मिक ज्ञान देते हैं, जो समझाते हैं बहोत अच्छा लगता है। आप एक धार्मिक व्यक्ति होने के कारण आपका धार्मिक विश्वास पक्का है। सामाजिक, धार्मिक परंपरा के उपर आपको स्म्पूर्ण विश्वास है। आपको सामाजिक परम्पराओं को निभाने में मजा आता है। आपकी विचार प्रक्रिया एक संस्थान के जैसे पक्की है। जो अच्छा है।

रिवर्स भविष्य कथन



भेद्यता, अपरंपरागतता, 'द फूल' तापूर्ण उदारता, नपुंसकता, कमजोरी, अपरंपरागत व्यक्तिगत विश्वास, स्वतंत्रता, यथास्थिति को चुनौती देना

हमेशा हर किसी से विचार साझा करने की आदत कें कारण आप कई व्यक्तिगत भेद भी लोगों को बताते है। लोगों को मदद करने का जुनून आप पर इतना ज्यादा हावी हो जाता है कि परिवार के लोगों को वह अ-व्यवहारिक उदारता लगती है। तो जरा लोगों को मदद करंते वक्त सावधान रहिए। कई बार अपरंपरागतता के कारण लोग आपको ठीक तरह से समझ नहीं पाते। क्योंकि कुछ निर्णय किसी के भलाई के लिए जाते है। उस वक्त परम्परा क्या कहती है यह देखा नहीं जाता। अपरंपरागत व्यक्तिगत विश्वास आपका उन चीजों पर होता है जहाँ पर जरूरत है।

माता सीता को त्यागने के बाद भी उसे ऋषी आश्रम में रखा गया था। जाऊँ उस वक्त की परम्परा अनुकूल नहीं था।

कई बार आपको नपुंसकता एवं कमजोरी का सामना करना पडता है। नपुंसकता शारिरीक भी हो सकती है और सामाजिक भी। सब कुछ जानते हुए आप कुछ एक्शन नहीं ले सकते। स्वतंत्रता के कारण आप यथास्थिति को चुनौती देना पसंद करते है।

युरोपिय टैरो कार्ड अभ्यास वस्तु



आइए कार्ड 'द हिरोफैंट' में विवरण देखें। एक बुद्धिमान व्यक्ति जो अपने बाएं हाथ में कुछ पवित्र उपकरण धारण किया हुआ है। उसका दाहिना हाथ हवा में है, दो उंगलियां बंद हैं और तीन उंगलियां आकाश की ओर हैं। वह आशीर्वाद नहीं दे रहा है। वह अपने अनुयायियों को भी नहीं देख रहे हैं, जो उनकी पूजा कर रहे हैं।

दो अनुयायी आश्चर्यजनक रूप से जुड़वां हैं; उन्हें समान कपड़े पहने हुए गंजे व्यक्ति के रूप में दिखाया गया है।

प्राचीन भारतीय टैरो कार्ड अभ्यास वस्तु


असल में वे प्रभु राम के जुड़वाँ बच्चे लव-कुश हैं। और पढाने वाले पितामह महर्षि वाल्मीकि हैं।

महर्षि वाल्मीकि ने रामायण महाकाव्य की रचना की थी। कुछ विद्वान ऐसे मानते है कि रामायण की कथा राम्राज्याभिषेक पर आकर समाप्त होती है। किंतु इसकी प्रचंड लोक्प्रियता के कारण कुछ लोगों ने उत्तर रामायण की रचना की। जिसमें राम को सामान्य व्यक्ति दिखाने का प्रयास हुआ।

उत्तर रामायण में वें अपनी गर्भवती पत्नी का त्याग कर देते हैं। बच्चे आश्रम में पलते हैं। आगे अनजाने में अपने पिता के विरोध में ही खडे होते हैं। किंतु यह विषय लोगों की आस्था का होने के कारण उसके ज्यादा गहराई में जाने की आवश्यकता नहीं है।

लव-कुश प्रभु राम और सीता माता के जुडवा बच्चे थे। अपने पिता के जैसे ही पराक्रमी थे।

महर्षी वाल्मिकी अपने पूर्व जीवन काल में एक लुटेरा होते हैं। जो अपने पाप में बच्चे एवं पत्नि का हिस्सा नहीं होता यह जानकर सन्यस्त बन जाते हैं और रामायण की रचना कर देते हैं।

(कौन थे महर्षि वाल्मीकि और लव-कुश।)

महर्षि वाल्मीकि

एक बार रत्नाकर नाम का एक डाकू हुआ करता था। रत्नाकर अपने साथियों के साथ बीहड़ जंगल में रहता था और वहां से गुजरने वाला यात्रियों को लूट लिया करता था। दूर दूर के इलाकों में रत्नाकर के नाम का खौफ था।

एक बार की बात है, दिन छिप चुका था और थोड़ा अँधेरा हो रहा था, उस समय नारद मुनि उस जंगल में विचरण कर रहे थे कि तभी डाकू रत्नाकर ने अपने साथियों के साथ नारद जी को घेर लिया। नारद मुनि अपने आप में मग्न थे उनके मन में किसी प्रकार का कोई डर नहीं था।

रत्नाकर ने नारद जी से पूछा – सुनो ब्राह्मण, मैं रत्नाकर डाकू हूँ। क्या तुमको मुझसे भय नहीं लग रहा ?

नारद मुनि ने कहा – रत्नाकर मुझे किसी भी बात का भय नहीं है। मैं ना तो किसी असफलता से डरता हूँ और नाही मुझे अपने प्राणों का भय है, ना कल का और ना कलंक का…..लेकिन शायद तुम डरे हुए हो….

रत्नाकर ने गुस्से में कहा – मैं डरा हुआ नहीं हूँ, मुझे भला किसका डर है ?

नारद मुनि – अगर डरे नहीं हो तो इन जंगलों में छिप कर क्यों बैठे हो ? शायद तुम राजा से डरते हो या फिर प्रजा से

रत्नाकर – नहीं मैं किसी से भी नहीं डरता

नारद मुनि ने मुस्कुरा के कहा – तुम पाप करते हो और तुम पाप से ही डरते हो इसलिए तुम यहाँ छिप कर बैठे हो लेकिन शायद तुमको नहीं पता कि इस पाप के केवल तुम ही भागीदार हो। इसका दण्ड तुमको अकेले भुगतना होगा कोई भी तुम्हारा साथ नहीं देगा।

रत्नाकर ने गुस्से में कहा – तुम मुझे उकसा रहे हो ब्राह्मण….मैं ये सब काम अपने परिवार का पेट पलने के लिए करता हूँ और मेरी पत्नी, मेरे बच्चे, मेरे पिता सभी इस काम में मेरे साथ हैं।

नारद मुनि ने कहा – सुनो रत्नाकर, मुझे अपने प्राणों का भय नहीं है, तुम मुझे यहाँ पेड़ से बांध कर अपने घर जाओ और अपने सभी सगे सम्बन्धियों से पूछो कि क्या वह इस पाप में तुम्हारे साथ हैं?

रत्नाकर को नारद मुनि की बात सही लगी और वह उनको पेड़ से बाँधकर अपने घर की ओर चल दिया। घर जाकर उसने सबसे पहले अपनी पत्नी से पूछा कि मैं जो ये पाप करता हूँ क्या तुम उस पाप में मेरे साथ हो ? तो पत्नी ने उत्तर दिया कि स्वामी आप इस परिवार के पालक हैं ये तो आपका कर्तव्य है इस पाप में मेरा कोई हिस्सा नहीं है।

रत्नाकर बेचारा उदास सा होकर अपने पिता के पास पहुँचा और उनसे भी यही सवाल पूछा तो पिता ने कहा – बेटा ये तो तेरी कमाई है, इस पाप में हमारा कोई हिस्सा नहीं है। डाकू रत्नाकर के प्राण सूख गए उसे ये सब सुनकर बहुत बड़ा धक्का लगा कि वह जिनके लिए ये पाप कर रहा है वो उसके पाप में भागीदार होने को तैयार नहीं हैं। रत्नाकर हताश होकर वापस नारद मुनि के पास गया और नारद मुनि के पाँव में गिर पड़ा और क्षमा मांगने लगा।

नारद मुनि ने उसे उठाया और सत्य का ज्ञान दिया। नारद मुनि ने कहा – सुनो रत्नाकर, इस धरती पर तुम जो भी कार्य करते हो, चाहे गलत या सही, सबका पाप और पुण्य तुमको ही मिलेगा। अपने सभी कुकृत्यों के लिए तुम ही जिम्मेदार हो। तुमने पुराने जीवन में जो कुछ पाप किये उसके जिम्मेदार भी तुम हो और आगे आने वाले जीवन में जो भी करोगे उसके भी जिम्मेदार अकेले तुम ही होंगे।

नारद मुनि ने रत्नाकर को सत्य से परिचित कराया और उन्हें “राम” का नाम जपने का उपदेश भी दिया। रत्नाकर से “राम” नाम लिया ही नहीं जाता था तो नारद मुनि ने उसे “मरा मरा” का उच्चारण करने को कहा और “मरा मरा” जपते हुए यही रत्नाकर राम नाम का जाप करने लगा और आगे जाकर यही रत्नाकर महर्षि “वाल्मीकि” के नाम ये प्रसिद्ध हुआ। महर्षि वाल्मीकि आदिकाल के सबसे उच्च ऋषि हैं। वह संस्कृत के विद्वान कवि और दुनिया के सबसे बड़े ग्रन्थ “रामायण” के रचयिता हैं। महर्षि वाल्मीकि ने ही हिंदुओं के सबसे प्रसिद्ध ग्रन्थ “रामायण” को संस्कृत में लिखा।

वाल्मीकि रामायण के अनुसार भगवान राम के छोटे पुत्र कुश थे और बड़े पुत्र लव थे | कुश से वर्तमान कछवाहा का वंश चला । कछवाहा भारत में कुशवाहा जाति की उपजाति है। परंपरागत रूप से वे कृषि करने वाले किसान थे लेकिन 20 वीं शताब्दी में वे राजपूत गोत्र होने का दावा करने लगे। जाति के भीतर कुछ परिवारों ने कई राज्यों और रियासतों पर शासन किया है जैसे अलवर, अंबर (जिसे बाद में जयपुर कहा जाने लगा) और मैहर।

ये दोनों जुड़वां भाई लौह (या लव) और कुश अपने पिता राम के समान ही यशस्वी हुए और इन्होंने क्रमशः लाहौर (पुरातन काल में लौहपुरी या लवपुरी कहा जाता था) एवं कसुर (पुरातन काल में कुशपुरी कहा जाता था) नगरों की स्थापना की थी।

पाकिस्तान में पंजाब के लाहौर के शाही किले के भितर लव का एक मंदिर भी स्थित है। यह मन्दिर आलमगीरी दरवाजे के निकट स्थित है, जहां लाहौर किले का पुराना कारागार हुआ करता था

लव व कुश ने राम के अश्वमेघ घोड़े को पकड़ कर राम को युद्ध के लिये चुनौती दे डाली थी।अयोध्या के सभी वीरों को छोटे से बालक ने हराकर यह सिद्ध कर दिया था; शक्ति का गुरूर खतरनाक होता है। लव के भाई होने के कारण कुश ने अपनी माँ सीता को न्याय दिलाने के लिये अयोध्या राजा सह पिता से भरी सभा में संवाद किया और माँ सीता को पवित्र और सत्य सावित किया। बार बार अग्नि परीक्षा से व्यथित होकर सीता माता ने अपनी पवित्रता सिद्ध करते हुवे धरती माँ से खुद को अपनी गोद मे स्थान देने का निवेदन किया तब धरती माता ने प्रकट होकर सीतामाता को अपनी गोद मे बिठाकर धरती में समा लिया





प्राचीन भारतीय टैरो कार्ड

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